सम्पादकीय


सूबा-ए-मध्यप्रदेश के उत्तर में मुम्बई-जबलपुर इलाहाबाद-कोलकाता मुख्य रेल मार्ग के ठीक बीचोबीच स्थिति सतना जंक्शन विंध्य क्षेत्र का इकलौता ज़िला है जिसकी एक सीमा तो उत्तर प्रदेश प्रान्त को छूती है तो दूसरी सीमा बघेलखण्ड को। सतना रेल्वे का जंक्शन भी है जो रीवा को जोड़ता है। यह शहर मुख्यतः खेतिहर है मगर अब व्यापार का भी मुख्य केन्द्र बन गया है। यह इलाक़ा पूर्णतया हिन्दी भाषी क्षेत्र है। उर्द ज़बान ज़िबान का कहीं दर-दर तक नामो-निशान भी नहीं है। फिर भी सतना शहर में पिछली चालिस दहाईयों से एक शख्स जो न सिर्फ उर्दू ज़बान को अपनी बोलचाल और लिखने-पढ़ने में शामिल किए हुए है बल्कि शेरो-अदब की अलख भी जगाए हुए है। माहिरे-तिब्ब (होमियोपैथी डाक्टर) और कोहना मश्क शायर एक तरफ़ तो लोगों के जिस्मानी इमराज़ (बिमारियों) का इलाज करके इंसान को तवानाई (सेहतमंदी) बख़्यता है तो दूसरी तरफ़ अपने खूने-जिगर से ग़ज़ल की आबयारी करके लोगों को रूहानी खुशी और फ़रहत बख़्शता है। यक़ीनन ये दोनों किस्म की ख़िदमात किसी आम आदमी के बश की बात नहीं। यह काम तो कोई फ़रिश्ता सिफ़त इंसान ही अंजाम दे सकता है। इस अज़ीम मगर गुमनाम सी शख्सियत का नाम है डॉ. एस.एम. शफ़ी जिसे न तो अपनी चारागरी की शोहरतो-मक़बूलियत से कोई दरकार है और न ही शेरो-अदब की नोक पलक सँवारने की कोई वाह-वाही और सिताइश की तलब। यह तो बस अपनी धुन में अकेला अपनी राह पर गामज़न है। मेडिकल प्रेक्टिस के बाद वह सबका सब उर्द ज़बानो-अदब को नज्र कर देता हैसतना शहर का यह इकलौता मुजाहिदे-उर्दू है जिसकी वजह से शहर में सालाना आल इंडिया मुशायरा एवं माहाना अदबी नशिस्तों की रिवायत क़ायमो-दायम है। सेमाही "रिसाला-ए-इंसानियत" की इशाअत (वर्ष-2008) से ही रिसाले से इनका जुड़ाव रहा और अक्सरो-बेश्तर शुमारे में इनकी शेरी तख़लीक़ात भी शाया होती रहींयूँ तो डॉ. 'शफी' उर्दू अदब की सभी अस्नाफ़े-सुख़न (विधाओं) में भरपूर तबाआज़माई करते हैं मगर बुनियादी तौर पर ग़ज़ल इनकी महबब सिन्फे-सखन है और इसी में इनके जौहर भी खुलते हैं। उर्दू के साथ ही साथ हिन्दी ज़बान में दोहा, मुक्तक, गीत और भजन लिखने में भी इन्हें महारत हासिल है। इस तरह उर्दू ज़बान की तरक्की-ओ-तरवीज के साथ-साथ हिन्दी भाषा के विकास में भी इनका बराबर का हिस्सा है। नशिस्तों के अलावा मक़ामी काव्य गोष्ठियों में भी इनकी बराबर की शिर्कत रहती है लिहाजा हिन्दी वाले भी इन्हें दिलो-जान से चाहते हैं। डॉ. 'शफ़ी' अपने ज़िन्दगी में जिन हालातो-हादसात से दो-चार होते हैं, उसे ही अपनी शायरी का उन्वान बनाते हैं। समाज के द:ख-दर्द व कर्ब. बदउन्वानियाँ, आपसी फट, भाई का भाई के साथ जुल्मो-सितम, ऊँच-नीच, छुआ-छूत, हिन्दूमुस्लिम भेदभाव, आज की गंदी सियासत, रिश्वतखोरी, भ्रष्टाचार, आतंकवाद, नक्सलवाद, जात व नस्लवाद, अमीरग़रीब, जहेज़, माँ-बाप की नाक़द्री, मॉब लीचिंग और खूनख़राबा, ग़र्ज़ कि जो भी बिमारियाँ इंसान के फूलने-फलने में रूकावट पैदा करती हैं, डॉ. 'शफी' उसके घोर विरोधी हैं और न सिर्फ उसकी मज़म्मत (भर्त्सना) करते हैं बल्कि उसे अपनी शायरी का उन्वान बना कर हत्तल इम्कान इन बुराईयों को जड़ से मिटाने की कोशिश भी करते हैं। डॉ. 'शफ़ी' सलीस और सादा ज़बान में शायरी करते हैं जो हर ख़ासो-आम के दिलों पर दस्तक देती है। यही वजह है कि अवाम टूट कर उनसे मोहब्बत करती है। डॉ. एस.एम. 'शफ़ी' साहब के शख्सियतो-फ़न (व्यक्तित्व एवं कतित्व) पर रिसाले का खुसूसी शुमारा निकालने में हमें निहायत ख़ुशी महसूस हो रही है और मैं रिसाला परिवार की ओर से उन्हें दिली मुबारकबाद के साथ ही साथ अच्छी सेहत के लिए दोआ गो हूँ। -


प्रधान सम्पादक